झारखंड के चुनाव नतीजों के बाद भाजपा पर दबाव बढ़ाएंगे सहयोगी दल
झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे ने भाजपा की चुनौती बढ़ा दी है। सूबे का नतीजा ऐसे समय में आया है जब नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी पर राजग के कई सहयोगी दलों ने अपनी ओर से सार्वजनिक रूप से चिंता जताई है। जाहिर तौर पर अब भाजपा के लिए राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, एनआरसी, समान नागरिक संहिता और धर्मांतरण विरोधी कानून जैसे राष्ट्रवादी एजेंडे पर सहयोगियों को साधना इतना आसान नहीं होगा।
लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों ने पार्टी की परेशानी बढ़ा दी है। महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव ऐसे समय में हुए थे, जब मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाने का ऐतिहासिक फैसला लिया था। झारखंड के चुनाव ऐसे समय में हुए जब सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के पक्ष में निर्णय सुनाया तो सरकार ने विपक्ष के तीखे विरोध के बावजूद सीएए को अमली जामा पहनाया। हालांकि इसके बावजूद पार्टी को हरियाणा में जेजेपी के रूप में बैसाखी का सहारा लेना पड़ा, जबकि महाराष्ट्र और झारखंड में पार्टी सत्ता से बाहर हो गई।
भावी राष्ट्रवादी एजेंडे पर होगी परेशानी
लोकसभा चुनाव के बाद से ही मोदी सरकार राष्ट्रवादी मुद्दों को लेकर मुखर है। बीते दो सत्रों में पार्टी ने अनुच्छेद 370 को निरस्त किया और सीएए को कानूनी जामा पहनाया। अगले सत्र में पार्टी की रणनीति राष्ट्रीय जनसंख्या नीति तैयार करने और इसके बाद समान नागरिक संहिता और एनआरसी के मोर्चे पर आगे बढ़ने की थी। संसद में समर्थन के बाद जिस प्रकार जदयू, लोजपा, शिअद, अगप जैसे सहयोगियों ने एनआरसी का विरोध शुरू किया है, उससे सरकार की आगे की राह आसान नहीं है। सवाल है कि अब भाजपा इन मोर्चों पर किस तरह आगे बढ़ेगी।
मतदान के नए ट्रेंड से भी चिंता
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी राज्यों में भाजपा के वोट घटे थे, मगर मोदी के जादू की बदौलत पार्टी वर्ष 2018 तक 19 राज्यों पर कब्जा जमाने में कामयाब हुई थी। वर्ष 2017 में पार्टी देश की 43 फीसदी आबादी पर राज कर रही थी। मगर अब मतदान के नए ट्रेंड ने भाजपा की चिंता बढ़ाई है।
राज्यों में मतदाताओं का एक ऐसा वर्ग है जो लोकसभा चुनाव में तो खुल कर मोदी के नाम पर वोट देता है, मगर विधानसभा में यही वर्ग स्थानीय सरकार के कामकाज और सीएम की छवि को भी महत्व देता है। यही कारण है कि लोकसभा चुनाव के बाद हुए तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा के मत प्रतिशत में भारी गिरावट दर्ज की गई। लोकसभा चुनाव में पांच राज्यों में विपक्ष का करीब-करीब सूपड़ा साफ करने वाली भाजपा विधानसभा चुनाव में औंधे मुंह गिरी है।