23 करोड़ जनता की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता, जनता के हित में होगा निर्णय : योगी आदित्यनाथ
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। - फोटो
सीएए विरोधी हिंसा के आरोपियों के पोस्टर हटाने के हाईकोर्ट के आदेश पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश का अध्ययन कराया जा रहा है। सरकार की पहली प्राथमिकता यूपी की 23 करोड़ जनता की सुरक्षा है। जो जनता के हित में होगा, उसी हिसाब से निर्णय लिया जाएगा।
ये है पूरा मामला :
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ में सीएए के विरोध के दौरान हुई हिंसा के आरोपियों के पोस्टर बैनर अविलंब हटा लेने का लखनऊ प्रशासन को निर्देश दिया है। कोर्ट ने लखनऊ के डीएम और पुलिस कमिश्नर से कहा है कि इन पोस्टरों को तत्काल हटा कर आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट 16 मार्च तक हाईकोर्ट के महा निबंधक के समक्ष दाखिल कर दी जाए।
सार्वजनिक संपत्ति में तोड़फोड़ करने के आरोपियों से नुकसान की वसूली के लिए लखनऊ प्रशासन ने कार्रवाई शुरू की है, इसके तहत लगभग 50 आरोपियों के पोस्टर सड़कों पर लगा दिए गए हैं। जिन पर यह संदेश लिखा है कि यह सभी लोग नुकसान की भरपाई के लिए जुर्माना जमा करें।
इस संबंध में मीडिया में प्रकाशित रिपोर्टों पर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति गोविंद माथुर ने स्वत: संज्ञान लेते हुए स्पेशल बेंच गठित की थी तथा राज्य सरकार से जवाब तलब किया था। रविवार को न्यायमूर्ति गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की स्पेशल बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की।
कोर्ट ने क्या कहा ?
अदालत ने प्रदेश सरकार की कार्रवाई को संविधान के अनुच्छेद -21 में दिए गए मौलिक अधिकार ‘निजता के अधिकार’ के विपरीत माना है। कोर्ट का कहना था कि मौलिक अधिकारों को छीना नहीं जा सकता है । कोई भी ऐसा कानून नहीं है, जो किसी व्यक्ति की निजी सूचनाओं को पोस्टर बैनर लगाकर के सार्वजनिक करने की अनुमति देता हो।
कोर्ट ने के एस पुत्तूस्वामी मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि लोकतांत्रिक देश में वैधानिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कार्यवाही किया जाना आवश्यक है। मगर महाधिवक्ता यह बताने में नाकाम रहे कि आरोपियों का पोस्टर लगाना क्यों जरूरी था। वैधानिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किसी व्यक्ति का पोस्टर लगाने का कोई कानून नहीं है ।
कोर्ट ने कहा कि आरोपी वह व्यक्ति हैं जिनसे कुछ जुर्माना वसूला जाना है जबकि उत्तर प्रदेश में लाखों ऐसे आरोपी हैं, जो गंभीर अपराधों में शामिल हैं, प्रदेश सरकार ने कभी भी ऐसे आरोपियों का डाटा सार्वजनिक नहीं किया, फिर किस आधार पर तोड़फोड़ -हिंसा में शामिल आरोपियों का डाटा सार्वजनिक किया गया।
कोर्ट ने कहा कि राज्य द्वारा की गई कार्रवाई अनावश्यक है और लोगों की निजता में अनावश्यक का हस्तक्षेप है, जो निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है। कोर्ट ने याचिका निस्तारित करते हुए आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट 16 माह निबंधक के समक्ष दाखिल करने का आदेश दिया।