बेबस ,लाचार मजदूर,हिटलर शाही तानाशाह सरकार-ब्यास यादव

बेबस,लाचार मजदूर,हिटलर शाही तानाशाह सरकार-ब्यास यादव


सोनू कुमार यादव RV NEWS LIVE उपसंपादक देवरिया



देवरिया ।समाजवादी पार्टी के बरिष्ठ नेता ब्यास यादव ने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से कहा की भारत देश का विभाजन जब सन्1947 को हुआ। देश के दोनों तरफ विभाजन की एक लकीर खिंच दी गयी।उस समय देश की कुल जनसंख्य लगभग 39 करोड़ थी।जिसमे से लगभग3 करोड़ पश्चिमी पाकिस्तान व् 3 करोड़ पूर्वी पाकिस्तान में चले गये। भारत में कुल बचे 33करोड़, 1करोड़50 लाख लोग इधर से उधर आये और गये। देश गुलामी से अभी आजाद हुआ  था। उस दौर में कितनी त्रासदी कितनी दिक़्क़त  व परेशानी थी।लेकिन इन सब के बावजूद उस समय शरणार्थी कैम्प लगे थे।उसमें सबको खाने की रोटियाँ दी जा रही थी। आवाजाही की पूरी छूट थी।


आज देश में कुल लगभग 40 करोड़ लोग एक राज्य से दूसरे राज्यों में मजदूरी, नोकरी व् रोजगार करने के लिये घर से बाहर है। आज देश में लाकडाउन से एक ऐसी स्थिति पैदा हो गयी है। कि सभी मजदूर अपने अपने राज्यों व् घरों को जाने के लिये कितनी दिक़्क़त, परेशानी, व त्रासदी  दुर्दशा को झेल रहे ये तो  है ही । साथ ही अब आगे एक अंदेशा है कि क्या मजदूर दूसरे राज्यो में जायेगे? अगर जाते है। तो क्या उन्हें जाने दिया जायेगा?,पिछले दिनों महारष्ट्र में " भैया भगाओ,बिहारी भगाओ" का नारा लग रहा था।और आज बिना  भगाये सब खाली हो गया।राज्यों की सरकारे अपने जनता की दबाव में कुछ भी निर्णय ले सकती है।जिसका उदाहरण लाकडाउन में ही दूसरे राज्यों के लोगो को उन्हें कोई मदत नही दी जा रही है।


श्री यादव ने कहा की इस वर्ष1 मई को मजदूर दिवस पर बहूत से मजदूरों के घर चूल्हे नहीं जले, बहुतों को खाना नहीं मिला,वे अपने घर की दिक़्क़त व अपनी परेशानी को दूर करने के लिये बड़ी मजबूरी में बाहर मजदूरी करने व् कमाने देश विदेश एव दूसरे राज्यों में चले गये। जिससे उनका व उनके परिवार का  खर्च चलता रहा। लाक डाउन के वजह से जब सभी कल कारखाने बंद हो गये। और दहाड़ी मजदूरों की मजदूरी भी बंद हो गयी।तो वे भूख से तरफड़ाने व मरने लगे बहूत से मजदूर तो दिन भर काम करते शाम को राशन,सब्जी,दाल,नमक,तेल, मशाला,लेकर आते है। वे खाना बनाते खाते है। लाक डाउन के वजह से जब सारे उद्योग बन्द हो गये। तो इनका काम भी बन्द हो गया। इनका अब खर्च कैसे चले, चूल्हा कैसे जले।लाक डाउन लम्बा होने व् खत्म होने के अभी आसार न दिखने पर ये घर जाने के लिये परेशान हो गये।ट्रेन, बस, एव सभी आने जाने के साधन बन्द हो गये तो ये जाय कैसे? ,तब उसके बाद ये पैदल,सायकिल,मोटरसाइकिल,रिक्शा ऑटो व् मालढुलाई कर रहे ट्रकों पर सवार होकर अपने घरों को भारी संख्या में लगे जाने। देश के सभी प्रदेशो में हर राज्य अपने प्रदेश के बाडर को  सील कर इन्हे रोकने लगे।तो ये अपने घर जाने की गुहार लगाते रहे। और ये बेचारे किसी से कुछ नही माग रहे।अपने ही देश में,अपने राज्य व अपने  घर जाने का केवल रास्ता मांग रहे। तो इनको लाठी व डण्डा मारा जा रहा है।वे बेचारे दो-दो, तिन-तिन, दिनों से भूखे प्यासे न खाने न पिने की कोई व्यवस्था  नही, सभी होटल-चाय पान की दुकाने सब बन्द करे तो करे क्या, इस संकट काल की घड़ी में उसको न अपना देश लगा, न प्रदेश लगा,  न ये सरकार लगी।  किसी ने साथ नही दिया। बल्कि कुछ हद तक उनका साथ आम जनता,सामाजिक संगठन व् विपक्ष के लोगों ने दिया। सरकार ने तो सहयोग व् सहायता कर रहे उन विपक्ष के लोगों को मना कर दिया।चाहे राशन बांटने की बात हो या बस चलाने की बात हो।ये बहूत ही अपार कष्ट व् दुःख की बात है  


देश की आजादी का जश्न देश के लोग मनाते हैं। लेकिन मजदूरों की लड़ाई एक देश की नहीं दुनिया के मजदूरों की है। बड़ी क्रांति व संघर्ष के बाद आज इनको 8 घंटे का काम करने का नियम बना और मालिको का उत्पीड़न बन्द हुआ। अमेरिका में हुए गृह युद्ध के बाद, अमेरिकन नेशनल लेबर यूनियन ने  अपने अधिवेशन में यह मांग रखी कि मील मालिक, मजदूरों से केवल 8 घंटे दिन में काम लें, क्योंकि मालिक मजदूरों से बड़ी मेहनत से काम कराते है। 10 से 16 घंटे ड्यूटी लेते है। जिससे मजदूर थक कर कमजोर हो जाते है। और अक्सर बेहोश होकर गिर जाते,बीमार हो जाते,कमजोरी के वजह से बहूत तो मर भी जाते।नेशनल लेवर यूनियन की अधिवेशन में हुए, इस घोषणा के बाद मजदूरों को बहुत बल मिला। उसके बाद 1 मई, 1886 को, फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनाइज्ड ट्रेड्स एंड लेबर यूनियन्स ने आठ घंटे के कार्य दिवस की मांग करते हुए राष्ट्रीय हड़ताल का आह्वान किया। देश भर के संगठित श्रमिकों ने इस कॉल का जवाब दिया। अपनी मांग को लेकर शिकांगो शहर में 3 मई 1886 को लगभग 40.000 मजदूरों ने सरकार से अपनी मांग मनवाने को लेकर सड़क पर उतर गये। उनके नारों से पूरा शिकांगो शहर गूंज उठा तथा देखते ही देखते आंदोलन उग्र हो गया। तो पुलिस बड़ी बेरहमी से निहत्थे लोगों पर गोली चला दी, जिसमें 6 मजदूर घटनास्थल पर मर गये, 40 के लगभग घायल हो गये। उन क्रांतिकारी मजदूरों का खून जब धरती पर गिरा तो प्रदर्शनकारी मजदूर और दो गुने जोश में आगये, और तेज व् उग्र हो गये, तथा अपने मजदूर साथी के खून से सने उस कपड़े को झंडा बनाकर लगे आसमान में लहराने- फहराने। तभी से मजदूरों का झंडा लाल रंग का हो गया।
   
सरकार की तानाशाही के खिलाफ दूसरे दिन 4 मई को मजदूरों के उस आंदोलन में शहर की जनता भी शामिल हो गयी।शहर में जब मजदूरों का जलूस निकला तो उसके पीछे-पीछे पुलिस भी चल रही थी। उनके ऊपर कोई शरारती व्यक्ति ने देसी बम फेंक दिया, एक पुलिस कर्मी की मौत व पांच  घायल हो गये।उसके बाद पुलिस ने अंधाधुंध गोली चला दी, जिसमें बहुत से मजदूर व आम लोग मारे गये। 100 से अधिक लोग घायल हो गये। और मजदूर नेताओं को जो आंदोलन चला रहे थे। उनको तो फांसी पर लटका दिया गया। उसके बाद भी जब आंदोलन चलता रहा बंद नहीं हुआ। तो 25 जून 1886 को लगभग 20 वर्ष मजदूरों और अमेरिकी  नेशनल लेवर यूनियन द्वारा किए गये आंदोलन के बाद। अमेरिकी संसद में मजदूर एक्ट का कानून पारित किया गया। 8 घंटे कार्य करने व अन्य मांगो को लेकर। तब से उनके ऊपर मालिको व् अधिकारियों का अत्याचार बन्द हुआ।और यह कानून बहुत से देशो में लागू भी है। लेकिनआज उस श्रम कानून को  हमारे देश में पलटा व् बदला जा रहा है। यह मजदूरों के हक पर तानाशाही सरकार के द्वारा डाका डाला जा रहा है। मील मालिकों व् पूँजीपतियों को लाभ पहुँचाने के लिये।आज देश के मजदूर संगठननों के द्वारा या विपक्षी दलों  के द्वारा उनके मुद्दे पर कोई बड़ा आंदोलन नहीं हो रहा है। जबकि "भारतीय मजदूर संघ"-(B.M.S.), जिसके सदस्य देश में लगभग, एक करोड़ 50 लाख मजदूर होंगे। इस संघ का गठन जब से हुआ तब से ये मजदूर हित में लड़ता रहा,अपनी मांगे भी मनवाता रहा।और आज सत्ता पर काबिज है। और आज मजदूरों के ऊपर सबसे बड़ा संकट है। तो इस संकट की घड़ी में यह मजदूर संगठन चुप क्यों है? जिसका कारण लाक डाउन भी हो सकता है।लेकिन क्या लाक डाउन के बाद मजदूर के सवाल  खड़े होंगे?
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                    व्यास यादव 
               समाजवादी  देवरिया


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