पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों के साथ ही एक नई लड़ाई का आगाज, विपक्षी एकजुटता का सुर फिर तेज
आशुतोष झा, नई दिल्ली। पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के साथ ही एक नई लड़ाई का आगाज भी हो गया है। इसमें भाजपा व राजग के मुकाबले बाकी सभी को एकजुट करने की कवायद कितनी तेज होगी यह तो वक्त बताएगा, लेकिन यह तय है कि अब जंग बहुत आक्रामक व तीखी होगी। न सिर्फ चुनावी या प्रादेशिक बल्कि राष्ट्रीय और रोजमर्रा की राजनीति में भी।
ममता बनर्जी भाजपा के सबसे मुखर विरोधी के रूप में स्थापित
फिलहाल ममता बनर्जी ने खुद को भाजपा के सबसे मुखर विरोधी के रूप में स्थापित कर लिया है। जिस तरह बंगाल में चुनाव के दौरान भी राजनीतिक हिंसा का दौर जारी रहा था उसमें यह आशंका और भी गहरा गई है कि अब सत्ता को स्थापित करने के लिए एक बार फिर हिंसक घटनाएं बढ़ सकती हैं।
भाजपा का ऐतिहासिक विस्तार
बहरहाल, ममता ने जो बढ़त ली है उसके बाद कुछ अन्य नेताओं व दलों की ओर से भी मुख्य विपक्ष दिखने की कवायद तेज हो सकती है। इसका सीधा और सरल रास्ता है- कटु वार, तीखे बोल। कांग्रेस के लिए यह थोड़ा और भी जरूरी हो गया है क्योंकि अब ममता जैसी प्रखर नेता सामने खड़ी हो गई हैं। यूं तो भाजपा के खिलाफ गोलबंदी उसी वक्त से शुरू हो गई थी जब पार्टी केंद्र में पूर्ण बहुमत के साथ आई थी और फिर एक-एक कर दूसरे राज्यों में ऐतिहासिक विस्तार हुआ।
बिहार को छोड़कर कोई समीकरण भाजपा के जादू के सामने नहीं टिक सका
पिछले विधानसभा चुनाव में बिहार में जदयू और राजद जैसे विरोधी दलों का एकजुट होना, उत्तर प्रदेश में एक दूसरे की दुश्मन सपा और बसपा का हाथ मिलाना, असम में कांग्रेस और एआइयूडीएफ का एक होना जैसे कुछ उदाहरण भी हैं, लेकिन बिहार को छोड़कर कोई समीकरण भाजपा के जादू के सामने नहीं टिक सका।
सियासी कड़वाहट और खटास: सियासी मजबूरी ने विपक्ष को एकजुट नहीं होने दिया
अधिकतर अवसरों पर विपक्षी दलों की अपनी सियासी मजबूरी ने उन्हें कभी एकजुट नहीं होने दिया। इस दौर की राजनीति में एक बात बहुत खुलकर दिखी और वह है सियासी कड़वाहट और खटास। संभवत: इसका एक बड़ा कारण यह है कि विपक्ष बार-बार बौना साबित होता रहा है। बंगाल ने उसी खटास को और ज्यादा आंच दे दी है। तृणमूल की ओर से भी खटास तब बढ़ी जब 2019 में भाजपा ने उसकी लगभग आधी सियासी जमीन छीन ली थी।
विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा साबित करने को नेताओं में हो सकती है प्रतिस्पर्धा